लगातार मोबाइल गेम खेलने से मुड़ जाएगा अंगूठा:सीधा नहीं कर पाएंगे, 8 घंटे से ज्यादा समय फोन पर गेम खेलते हैं भारतीय
इंडिया मोबाइल ऑफ गेमिंग की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय हफ्ते में औसतन 8.36 घंटे मोबाइल पर गेम खेलते हैं। 60 प्रतिशत गेमर्स एक बार में लगातार 3 घंटे गेम खेलते हैं।
मोबाइल गेम की लत में उत्तरप्रदेश पहले नंबर पर है। महाराष्ट्र, राजस्थान दूसरे और तीसरे नंबर पर है। बिहार चौथे और पश्चिम बंगाल का नंबर पांचवां है।
2020 में की गई एक दूसरी रिपोर्ट में सामने आया कि 65 प्रतिशत बच्चे ऑनलाइन गेमिंग के लिए खाना और नींद छोड़ने के लिए तैयार रहते हैं।
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, अक्सर समय बिताने के लिए लोग इसे खेलना शुरू करते हैं। ये कब आदत में बदल जाता है और जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाता है इसका पता खेलने वालों को नहीं चलता।
आज जरूरत की खबर में जानेंगे कि मोबाइल फोन गेमिंग की लत कैसे लग जाती है, इससे क्या नुकसान हो सकता है, इस लत से छुटकारा कैसे पाएं और गेमिंग के दौरान क्या सावधानी बरतनी चाहिए।
सवाल: मोबाइल गेमिंग लत में क्यों बदल जाती है?
जवाब: मोबाइल फोन के गेम्स को डिजाइन ही इस तरह से किया जाता है कि अगर गेमर हार भी जाए तो भी बार-बार खेलने का मन करता है। गेम्स बनाने वाले इन्हें ऐसे डिजाइन करते हैं कि यह सिर्फ इतना मुश्किल हो कि उनमें आपकी दिलचस्पी बनी रहे।
इस बात का भी ख्याल रखा जाता है कि गेम इतना टफ न बन जाए कि खेलने वाले हार के बाद गिव अप कर दें। या फिर वो दूसरे खेल की तरफ स्विच कर जाए। साथ ही आज मार्केट में इतने सारे गेम्स अवेलेबल हैं कि हर किसी के लिए कोई न कोई गेम मिल ही जाता है।
सवाल: अगर गेमिंग का एडिक्शन हो गया है तो क्या कर सकते हैं?
जवाब: अगर ऑनलाइन गेमिंग की लत हो गई है तो साइकायट्रिस्ट से सलाह लें। डॉक्टर इसका ट्रीटमेंट तीन तरह से करते हैं…
- कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी: इस थेरेपी में थेरेपिस्ट आपको अपने विचारों और सोच पर ध्यान देने को कहते हैं। इससे आप समझेंगे कि आपके विचार कैसे आपके काम पर असर डालते हैं। इससे गेमिंग एडिक्शन से आने वाले नेगेटिव विचारों से छुटकारा मिलता है। इसके बाद ही दिमाग में नए और पॉजिटिव विचार आ पाएंगे।
- ग्रुप थेरेपी: इस थेरेपी में गेमिंग एडिक्शन से जूझ रहे कई लोगों को एक साथ बिठाया जाता है। वो सभी लोग अपने प्रॉब्लम्स डिसकस करते हैं। इससे सभी को मॉरल सपोर्ट मिलता है और एडिक्शन छोड़ने के लिए मोटिवेशन मिलती है।
- फैमिली और मैरिज काउंसलिंग: इसमें गेमिंग एडिक्शन से जूझ रहे लोगों के परिवार वालों और करीबियों को समझाया जाता है कि कैसे पेशेंट को हैंडल करना है।
सवाल: आपसे यह सवाल बार-बार पूछा जाता है, मैं भी पूछ रही हूं यह सोचकर कि मेरे सवाल और आपके जवाब को पढ़ने के बाद कुछ प्रतिशत लोगों में अपने बच्चों की लत को सुधारने की इच्छा जाग जाए। तो बताएं कि आजकल बच्चे जो हर वक्त ऑनलाइन गेम के चक्कर में रहते हैं, उन्हें इससे क्या-क्या प्रॉब्लम हो सकती है?
जवाब: हर समय ऑनलाइन गेमिंग में लगे रहने से बच्चों को कई प्रॉब्लम्स हो सकती हैं, जैसे…
- ऑनलाइन गेमिंग से बच्चों की पढ़ाई पर भी असर पड़ता है। बच्चे पढ़ने से ज्यादा गेम खेलना पसंद करते हैं।
- कई बार चोरी की लत लग सकती है।
- इससे बच्चों की सोशल स्किल्स खराब होती हैं।
- गेमिंग के चक्कर में बच्चे परिवार से दूर हो जाते हैं।
- स्कूल की पढ़ाई और बच्चों की दूसरी हॉबीज पर गलत असर पड़ता है।
- स्कूल की परफॉर्मेंस खराब हो जाती है।
- कम फिजिकल एक्टिविटी की वजह से बच्चों में मोटापे की समस्या बढ़ जाती है।
- बच्चों का व्यवहार और विचार अग्रेसिव हो जाता है।
मोबाइल गेमिंग में ज्यादा समय देना इस तरह होगा नुकसानदेह
- गेमिंग को ज्यादा समय देने से स्लीप पैटर्न बिगड़ जाता है। इससे दूसरे कामों पर फोकस करने में परेशानी हो सकती है।
- कई बार गेमिंग में इतना खो जाते हैं कि खाना-पीना भी भूल जाते हैं। ऐसे में डिहाइड्रेशन और ईटिंग डिसऑर्डर की परेशानी हो सकती है।
- गेमिंग की वजह से फिजिकल एक्टिविटी कम हो जाती है। इससे मोटापे की समस्या हो सकती है। इसके अलावा दिल की बीमारी और मसल्स की समस्या होने के चांसेज बढ़ जाते हैं।
- ज्यादा ऑनलाइन गेम खेलने वाले लोगों को फोकस करने में प्रॉब्लम होने लगती है। वो स्कूल, घर के काम या ऑफिस में कॉन्सन्ट्रेट नहीं कर पाते।
- अक्सर देखा गया है कि मोबाइल फोन पर ज्यादा गेम खेलने वाले लोगों में गुस्सा भी ज्यादा होता है।
- एक्सेसिव गेमिंग एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
- ऐसे लोगों का सोशल सर्कल घट जाता है क्योंकि वो लोगों से ज्यादा गेमिंग को टाइम देना पसंद करते हैं।
- जब कोई गेम खेलता है तो उसके दिमाग में डोपामाइन रिलीज होता है। डोपामाइन एक फील गुड और फील हैप्पी न्यूरोट्रांसमिटर है। मगर जो लोग एक्सेसिव गेमिंग करते हैं उनके दिमाग को डोपामाइन की आदत हो जाती है। इसके बाद किसी दूसरी चीज से या गेमिंग से भी उन्हें खुशी नहीं मिल पाती है।
सवाल: इससे क्या-क्या बीमारियां हो सकती हैं?
जवाब: हां, बिल्कुल। मोबाइल फोन पर ज्यादा गेमिंग करने से हो सकती हैं ये बीमारियां…
- कार्पल टनल सिंड्रोम: अंगूठे का मूवमेंट करने वाले टेंडन यानी तंत्र कोशिकाओं में सूजन आ जाती है और दर्द होने लगता है।
- ट्रिगर फिंगर: मोबाइल गेम खेलने वालों की उंगली सूजन की वजह से मुड़ जाती है और सीधी नहीं हो पाती।
- टेनिस एल्बो: कोहनी के आसपास सूजन आ जाती है और तेज दर्द महसूस होता है।
- ओबेसिटी: गेमिंग के चलते लोग फिजिकल एक्टिविटी नहीं कर पाते। इससे ओबेसिटी यानी मोटापे की समस्या हो जाती है जिससे आगे चलकर बीपी और दिल की बीमारी हो सकती है।
- आई स्ट्रेन: ज्यादा गेमिंग आंखों के लिए सही नहीं है। इससे आंखों पर प्रेशर पड़ता है।
- डिप्रेशन: गेमिंग की वजह से लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से दूरी बना लेते हैं। गेम खेलते वक्त दिमाग में डोपामाइन रिलीज होता है। ज्यादा खेलने से दिमाग डोपामाइन का आदी हो जाता है। उसे उससे खुशी महसूस नहीं कर पाता। इस वजह से गेमर्स को डिप्रेशन और एंग्जायटी हो सकता है।
सवाल: ऑनलाइन गेमिंग से होने वाले नुकसान को डिटेल में बता सकते हैं क्या?
जवाब: इससे मेंटल, फिजिकल और फाइनेंशियल तौर पर हमें कई तरह का नुकसान होता है। जैसे-
- ऑनलाइन गेमिंग के जरिए कई फ्रॉड किए जा रहे हैं।
- गेम खेलते हुए आप नहीं जानते जिसके साथ खेल रहे हैं, वो कौन है। ऐसे में साथ खेल रहा खिलाड़ी आपको साइबरबुलिंग का शिकार बना सकता है।
- ऑनलाइन गेम की बहुत जल्दी लत लग जाती है। इसलिए जो भी लोग इन्हें खेलना शुरू करते हैं वो इन्हें खेले बिना नहीं रह पाते।
- शूटिंग और फाइटिंग वाले कुछ ऑनलाइन गेम्स हिंसा को बढ़ावा देते हैं। इन्हें खेलने वाले बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है।
- कई ऑनलाइन गेम एडल्ट के लिए डिजाइन किए जाते हैं मगर रेगुलेशन की कमी की वजह से बच्चे भी उन्हें खेलते हैं।
- लंबे समय तक गेम खेलते रहने से हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है। लोग बहुत देर तक एक ही पोजिशन में बैठकर या लेटकर खेलते रहते हैं। इससे कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं।
सवाल: गेमिंग की वजह से फिजिकल एक्टिविटी कम हो गई है। इससे क्या नुकसान होता है?
जवाब: गेमिंग की वजह से फिजिकल एक्टिविटी काफी कम हो चुकी है। इससे कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं जैसे टाइप 2 डायबिटीज, हाई बीपी, हाई ब्लड कोलेस्ट्रॉल और दिल की बीमारियां। फिजिकल एक्टिविटी की कमी की वजह से समय से पहले मौत भी हो सकती है।
सवाल: फिजिकल एक्टिविटी कितनी जरूरी है?
जवाब: हर दिन एक्सरसाइज करना इसलिए है जरूरी…
- इससे मेंटल हेल्थ और मेंटल एबिलिटीज अच्छी होती है।
- हर दिन किसी टीम स्पोर्ट्स का हिस्सा रहते हैं तो सोशल सर्कल बढ़ता है, टीम भावना डिवेलप होती है और इंसान खुश रहता है।
- फिजिकल एक्टिविटी से दिनभर में ज्यादा कैलोरीज बर्न होती है। इससे आप अपना वजन मैनेज कर सकते हैं।
- इससे कई तरह की बीमारियां जैसे स्ट्रोक, बीपी, डायबिटीज से बचा जा सकता है।
- इससे हड्डियां और मसल्स मजबूत होती हैं।
- हर दिन फिजिकल एक्टिविटी करने से बैलेंस करने की एबिलिटी डिवेलप होती है।
सवाल: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में फिजिकल एक्टिविटी के लिए अलग से टाइम निकालना मुश्किल है। ऐसे में खुद को एक्टिव कैसे रखें?
जवाब: आजकल अधिकतर लोग एक बिजी शेड्यूल के चलते चाहकर भी फिजिकल एक्टिविटी नहीं कर पाते। नीचे दी गई कुछ टिप्स फॉलो करके आप बिजी रहते हुए भी फिट रह सकते हैं…
- दिन की शुरुआत एक बड़ा ग्लास पानी पीकर करें। साथ ही दिनभर अपने साथ एक पानी की बॉटल रखें। प्यास लगने पर सोडा या दूसरी शुगर वाली ड्रिंक्स से बचने के लिए पानी पीते रहें।
- छुट्टी वाले दिन पूरे हफ्ते के मील्स की प्लानिंग पहले ही कर लें। साथ ही पूरे हफ्ते के लिए हेल्दी स्नैक्स भी तय कर लें।
- कोशिश करें कि हफ्ते में कम से कम पांच दिन एक घंटा वर्कआऊट करें। अगर किसी दिन एक्सरसाइज करने का टाइम नहीं मिल रहा है तो अपने छोटे-छोटे काम करते हुए एक्सरसाइज कर सकते हैं। जैसे पानी गर्म होने का इंतजार कर रहे हैं तो स्कवाट्स लगा लें, एक कमरे से दूसरे कमरे में लंजेस करते हुए जाएं, काऊच के पास से जब भी गुजरे तो वहा ट्राइसेप डिप्स मार ले और लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करें।
- हेल्थ एंड फिटनेस के बारे में पढ़ते रहें। इससे आप खुद को फिट रखने के लिए मोटिवेटेड महसूस करेंगे।
- पूरी नींद लें। इससे आप तरोताजा महसूस करेंगे और एक्सरसाइज वगैराह बेहतर तरीके से कर पाएंगे। नींद पूरी न होने से स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसोल बढ़ जाता है। इससे ओवरइटिंग बढ़ जाती है।
- अपने साथ स्नैक्स के हेल्दी ऑप्शन्स रखें। समय-समय पर इन्हें खाते रहने से जंक फूड की क्रेविंग्स नहीं होगी।
- जंक फूड खाकर खुद को कोसने न बैठे। ऐसा भी न करें कि जंक फूड बिल्कुल छोड़ने की कोशिश करें। इससे बेहतर है कि जंक और हेल्दी फूड के बीच में एक बैलेंस बनाएं। हर चीज एक लिमिट में खा सकते हैं।
चलते-चलते
WHO के इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिसीज ने जब अपना मैन्युअल अपडेट किया तो उसमें गेमिंग डिसऑर्डर को शामिल किया। इसके अनुसार ऐसा नहीं कि गेम खेलने की लत केवल बच्चों में होती है। बहुत से दफ्तरों में भी एंग्री बर्ड, टेम्पल रन, कैंडी क्रश, कॉन्ट्रा जैसे मोबाइल गेम के कई दीवाने मिल जाएंगे।
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, अक्सर समय बिताने के लिए लोग इसे खेलना शुरू करते हैं, पर ये कब आदत में बदल जाता है और जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाता है, इसका अंदाजा इस्तेमाल करने वाले को कभी नहीं लगता।
क्या है गेमिंग डिसऑर्डर
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक लोगों में गेम खेलने की अलग तरह की लत होती है। ये गेम डिजिटल गेम भी हो सकते हैं या फिर वीडियो गेम भी।
इस बीमारी के शिकार लोग पर्सनल लाइफ में आपसी रिश्तों से ज्यादा अहमियत गेम खेलने को देते हैं, जिसकी वजह से रोज के कामकाज पर असर पड़ता है। लेकिन किसी भी आदमी को अगर इसकी लत है, तो उसे बीमार करार नहीं दिया जा सकता।
उस व्यक्ति के सालभर के गेमिंग पैटर्न को देखने की ज़रूरत होती है। अगर उसकी गेम खेलने की लत से उसके निजी जीवन में, पारिवारिक या सामाजिक जीवन में, पढ़ाई पर, नौकरी पर ज्यादा बुरा असर पड़ता दिखता है तभी उसे 'गेमिंग एडिक्ट' यानी बीमारी का शिकार माना जा सकता है। दिल्ली के एम्स में बिहेवियरल एडिक्शन सेंटर में 2016 में इसकी शुरुआत हुई थी।